बुधवार, 21 दिसंबर 2011

जहाँ डाल डाल पर सोने की चिड़िया करती है बसेरा, वो भारत देश है मेरा

भारत की ५०% जनता के पास न तो सोना कभी था और ना ही कभी आने के आसार हैं तो फिर क्या ये गाना लिखने वाला बेवकूफ था या हमें बेवकूफ बना के चला गया |

मैं अब सोचता हूँ कि काश मैं पहले से इतना समझदार होता कि अपने सबसे पसंदीदा देशभक्ति गाने को इसके अर्थ के साथ सुनने का आनंद ले पाता |

सोना तो केवल एक शब्द है जो उपमा देने के लिए इस्तेमाल हुआ है वरना भारत कि मुख्य संपत्ति तो अतुलनीय है | क्या हम यहाँ के पारिवारिक और सामजिक मूल्यों  की  कीमत  तय  कर  सकते  हैं?  क्या हम हमारी सभ्यता और संस्कृति को किसी  तराजू पर तौला जा सकता है?

ऋषियों के ज्ञान से समृद्ध और हमारे वीर पूर्वजों के बलिदानों से रक्षित यह हमारी संपदा अब सुरक्षित कैसे रह पाएगी, यह एक बड़ा सवाल है आज के पश्चिमीकरण की गति को देखकर ।

मुझे यह व्याख्या करनी है कि भले ही भारत में खूब सारा सोना रहा हो ३०० साल पहले तक, लेकिन जब यहाँ गीत लिखा गया था यानी कि ६०-७० साल पहले, तब तक अंग्रेज वैसे भी सारा कुछ बटोर चुके थे, तब कवि ऐसा क्यूँ कहता है कि :

जहाँ डाल डाल पर सोने की चिड़िया करती है बसेरा, वो भारत देश है मेरा ।
जहां सत्य, अहिंसा और धरम का पग पग लगता डेरा, वो भारत देश है मेरा ।।

मेरे प्यारे दोस्तों, इस प्रश्न का उत्तर तो दूसरी पंक्ति में ही है, बस हमारी दृष्टि को बदलना बस है । सत्य, अहिंसा और धर्म ही हैं जिसके वजह से हमारी संस्कार हैं और ये संस्कृति है। असली सोना तो यहीं हैं इसे पहचानो और बचाओ अंग्रेजियत के प्रभाव से ।

दोस्त अगर तुमने धन खोया तो क्या खोया ।
चंचल है ये लक्ष्मी, फिर तू क्यूँ रोया ।।
स्वास्थ्य खोये अगर तो चिंता कि बात है ।
संस्कारों बिन तो जीवन पर ही आघात है।।

सोमवार, 19 दिसंबर 2011

जीना इसी का नाम है

दीप सा जलकर, रोशन करें जहां |
जिस पथ हम चलें, खुशियाँ हों वहाँ ||
ख्याल यही है रखना,
हमको सुबह औ शाम है |
जीना इसी का नाम है ||

हमदर्द बनें सबके, मीठी बानी बोलें हम |
रखें नाता दिलों से, पैसों से ना तोलें हम ||
दर्द बांटने का यह काम,
काम नहीं आम है |
जीना इसी का नाम है ||

क्या किया मैंने जो, पैसे कमाए लाख |
बड़े बड़े हैं यहाँ, पर किसकी है साख ||
पैसे के भण्डार ज़माना नहीं,
दिलों में घर बनाना बड़ा काम है |
जीना इसी का नाम है ||

जियें तो परहित जियें, मरें तो परहित मरें |
स्वार्थ को छोड़ें, सदा सुकर्म ही करें ||
तब देखेंगे हम की,
धरा पर ही स्वर्ग धाम है |
जीना इसी का नाम है ||