धर्म का सदा मेरा आचरण हो ।
सत्य ही मेरा आवरण हो ।।
बना लो उसका अंग मुझको,
असुर दमन का जो उपकरण हो ।।
मेरी आवाज धर्म का उदघोषण हो ।
मेरा कार्य धर्म का पोषण हो ।।
उठूँ जब आवेश से मैं तो,
तीव्र अधर्म का यह क्षरण हो ।।
तुम सत्य व धर्म का उत्प्रेरण हो ।
मेरे हर कर्म का तुम ही कारण हो ।।
तुमको जाने बिना हे प्रभु,
इस जीव का ना मरण हो ।।
सत्य ही मेरा आवरण हो ।।
बना लो उसका अंग मुझको,
असुर दमन का जो उपकरण हो ।।
मेरी आवाज धर्म का उदघोषण हो ।
मेरा कार्य धर्म का पोषण हो ।।
उठूँ जब आवेश से मैं तो,
तीव्र अधर्म का यह क्षरण हो ।।
तुम सत्य व धर्म का उत्प्रेरण हो ।
मेरे हर कर्म का तुम ही कारण हो ।।
तुमको जाने बिना हे प्रभु,
इस जीव का ना मरण हो ।।