मंगलवार, 12 फ़रवरी 2013

एक धर्मप्रेमी की प्रार्थना

धर्म का सदा मेरा आचरण हो ।
सत्य ही मेरा आवरण हो ।।
बना लो उसका अंग मुझको,
असुर दमन का जो उपकरण हो ।।

मेरी आवाज धर्म का  उदघोषण हो ।
मेरा कार्य धर्म का पोषण हो ।।
उठूँ जब आवेश से मैं तो,
तीव्र अधर्म का यह क्षरण हो ।।

तुम सत्य व धर्म का उत्प्रेरण हो ।
मेरे हर कर्म का तुम ही कारण हो ।।
तुमको जाने बिना हे प्रभु,
इस जीव का ना मरण हो ।।

सोमवार, 11 फ़रवरी 2013

हमारी संस्कृति ही हमारी पहचान है

ज्ञान विज्ञान का भण्डार भरा है,
संस्कृति हमारी संपूर्ण है ।
ईर्ष्यालु हैं तो इसके भक्त भी हैं,
सद्भाव से यह परिपूर्ण है ।।

जीवन है संस्कृति बिना मानो,
दीप बिन, अन्धकार भरा पथ है ।
करो जीवन निर्देशित इससे कि,
गिर उठ न पाने का दर्द अकथ है ।।

लौटकर आ जाओ संतानों,
माता स्वरक्षा को तुम्हे बुलाती है ।
दुनिया उसे भुला देती है,
जो सभ्यता स्वयं को भुलाती है ।।