गुरुवार, 23 अगस्त 2012

सुनो तुम भी

आओगे जब तुम खोलकर हम भी दिखायेंगे
कि सीने में हमारे भी धधकती आग है ।
श्वान सी अपनी कुटिलता ले छुप जाओ कहीं
ज्ञात हो तुमको की नरसिंह अब गया जाग है ।।

भूलकर तुम देश को, आसक्ति में ही नित लिप्त हो
निरासक्त हम देशभक्त, संस्कारों में हमारे त्याग है ।
देश यह बगिया है तो, गुनगुनाते भौरे हैं हम
हर पुष्प के कर्ण में डालते, देशभक्ति का हम राग हैं ।।

जल नहीं है पर्याप्त तो, अमिय से भी धो लो तुम
छूट नहीं सकता की द्रोह का जटिल यह दाग है ।
कायरों तुम विश्वासघाती पीठ पीछे करते वार हो
देशभक्त शूरवीर हैं हम, रक्त से खेलते हम फाग हैं ।।

नवीन सबेरा आ रहा, हृदय में ज्ञान का प्रकाश है
वो बढ़ रहा है अंशुमाली, तम रहा भाग है ।
श्वान सी अपनी कुटिलता ले छुप जाओ कहीं
ज्ञात हो तुमको की नरसिंह अब गया जाग है ।।

गुरुवार, 16 अगस्त 2012

भोजन से स्वास्थ्य और सिद्धि

आजकल लोग एक दुसरे के लिए कहते हुए पाए जाते हैं कि फलाना आदमी तो खाने के लिए ही जीता है या कोई व्यक्ति जीने के लिए खाता है लेकिन मैं जो बात यहाँ पर मैं लिखने जा रहा हूँ वह इन सब बातों से अलग है ।

यह बात इस बारे में है कि क्या सिर्फ भोजन के द्वारा और यहाँ तक कि बिना व्यायाम या अन्य औषधियों के हम अपने शरीर को स्वस्थ और निरोग रख सकते हैं । और मेरा जवाब इस बारे में यह है कि हाँ हम रख सकते हैं और यहाँ तक कि एक स्थूल शरीर वाला व्यक्ति अपनी चर्बी को जितना चाहे उतना घटा भी सकता है ।

हमारे वेदों में और हमारी संस्कृति में वे बातें कई हजार साल पहले ही लिख दी गयी हैं जिनको आज कल नित नए आविष्कार के रूप में पश्चिम के वैज्ञानिक प्रस्तुत करते हैं । आप लोगों को लगेगा की ये क्या भाषण शुरू कर दिया मैंने लेकिन मैं आप लोगों को बता दूँ की ये जो बातें मैं कहने जा रहा हूँ वो मैंने वेदों, मनुस्मृति और चाणक्य नीति से प्राप्त किया है और मेरी जिंदगी में इन बातों पर अमल करते हुए सुखपूर्वक जीने वाले लोगों के उदाहरण भी उपलब्ध हैं । मैं स्वयं भी इन बातों के अनुसार चलने की कोशिश कर रहा हूँ हालाँकि ये बातें मेरे लिए भी काफी कठिन हैं और मैं कभी कभी इन्हें भूलकर विपरीत कर जाता हूँ फिर भी मैं अपने शरीर पर इनका प्रभाव महसूस कर सकता हूँ ।

अब मैं आपसे भोजन सम्बंधित कुछ नियमों पर चर्चा करूंगा जो कि धार्मिक, आध्यात्मिक या सामान्य नियम हो सकते हैं और अगर आप इनको बकवास समझते हैं तो आप यहाँ पर पढ़ना बंद कर सकते हैं और मुझे विश्वास है कि ये बातें आपके लिए नहीं हैं । अब बाकी लोग जो की जानने के लिए उत्सुक हैं  का  ज्यादा  समय  लिए  बिना  मैं  इन  नियमों  को  विस्तार  के  साथ  नीचे  बताने जा  रहा  हूँ और  ये  नियम  किस  प्रकार  से  आपको  लाभ  पहुंचा  सकते  हैं  ये  भी  बताया  जा  रहा  है ।  भोजन  के  वे  छः  नियम   जिनके बारे में मैंने इतना कुछ कहा है वे इस प्रकार हैं :

1.
कड़ी भूख लगे बिना कभी कुछ ना खाएं
यह नियम आज की भाग दौड़ वाली जिंदगी में सबसे ज्यादा आवश्यक है क्यूंकि जब हमें भूख लगाती है हमारे पास खाने का समय नहीं होता और जब हम खाली होते हैं हमें भूख नहीं लगी होती है इसलिए हम कभी भी कुछ भी खाते रहते हैं । मनुस्मृति और चाणक्य नीति के अनुसार बिना भूख लगे खाया गया पकवान या अति पोषक पदार्थ भी हमारे शरीर के लिए व्यर्थ है और हमारा शरीर उसे उसी प्रकार अवशिष्ट की तरह निकाल देता है जिस प्रकार भरे घड़े में पानी भरने पर वह बाहर बह जाता है । इस बात को तो हम व्याहारिक तौर पर भी समझ सकते हैं । आप कहेंगे कि भाई हमें तो बर्गर खाना है और हम पिज्जा के भी दीवाने हैं तो भाई मैंने कब कहा कि मत खाओ लेकिन तभी खाओ जब तुम्हे भूख लगी हो ।

2.
भोजन साफ़ सुथरा और प्रेमपूर्वक बनाया गया हो
यह बात मुख्य रूप से भावनात्मक और आध्यात्मिक है लेकिन मैं इसे सीधे शब्दों में स्पष्ट करने की कोशिश करूंगा । पहले मैं आपसे कुछ सवाल करूंगा जो इस प्रकार हैं:
  • अगर आप किसी रसोई को देखें जो गंदा और दुर्गन्धयुक्त है, क्या आप वहाँ खाना पसंद करेंगे ?
  • क्या आप मक्खियों वाली और बदबूदार जगह पर भोजन कर सकते हैं ?
  • क्या आपको माँ के हाथ का खाना होटल के खाने से अच्छा नहीं लगता है ?
ऊपर दिये सवालों के उत्तर से आप इस नियम के बारे में काफी हद तक समझ जायेंगे और मैं यह जोड़ना चाहूंगा की अगर हम कोई भोजन स्वस्थ मानसिकता के साथ और प्रसन्नतापूर्वक करते हैं तो हमार शरीर इसे भली भाति स्वीकार करता है । और माँ के हाथ का खाना अच्छा लगता है क्यूंकि खाना बनाने वाले की भावनायें खाना खाने वाले की मानसिकता को प्रभावित करती हैं ।

3.
भोजन सात्विक और भक्ष्य हो
यह बात भी भावनात्मक तौर पर ज्यादा विचारणीय है । हमने कहा है की भोजन मन में पवित्र  भावनाओं  के साथ करना चाहिए और ये सिर्फ सात्विक भोजन से ही हो सकता है । मांसाहार का आधार ही अकरुण व्यवहार है,  कसाई जीवों को मारता और बेचता है धन के लिए, खाने  वाला  खाता  है  स्वाद  के  लिए  । अब जो भोजन क्रूरतापूर्ण व्यवहार से आता है, जो साफ़ सुथरा नहीं है और जो असंयम के कारण प्रचारित है वह कभी भी स्वस्थ और संतुलित मानसिक स्थिति  में उदरस्थ नहीं किया जा सकता । मनुस्मृति में तो ये तक कहा गया है कि जो ब्रह्मण तामसिक और अभक्ष्य भोजन करता है वह ब्रह्मण के उच्च स्थान से गिरकर शुद्रत्व को प्राप्त करता है । बात कुछ भी हो लेकिन शुद्ध और सात्विक भोजन मन और मस्तिष्क को शांत और संतुलित रखता है जिससे शरीर स्वस्थ और निरोग रहता है । यह एक बहुत बड़ा मुद्दा है आज के समय का और बहुत से लोग मुझसे इस बिंदु पर असहमत होंगे और तर्क करना चाहेंगे लेकिन मैं आपसे बता दूँ मैं इस बात पर पूर्णतः विश्वास करता हूँ  और मैं कुतर्क में विश्वास नहीं करता ।

4.
भोजन के समय ध्यान भोजन पर केन्द्रित रखें
इसमें कई बातें शामिल है जैसे कि
  • भोजन के समय मौन रहकर भोजन करें
  • भोजन के समय टी.वी. ना देखें  
इन सब बातों का कारण यही है कि अगर आप एक से अधिक चीजों पर एक ही समय पर ध्यान बटायेंगे तो एक भी काम ढंग से नहीं कर पायेंगे । चाणक्य ने तो चाणक्य नीति में यहाँ तक कहा है कि जो व्यक्ति लगातार पांच वर्षों तक मौन रहकर भोजन करने का नियम पालन करता है वह वाणी की सिद्धि प्राप्त कर लेता है । मौन रहकर और भोजन पर ध्यान केन्द्रित रखते हुए भोजन करने से आप अच्छी तरह भोजन को चबा पाते हैं और आपका शरीर और मस्तिष्क  भोजन में छिपे हुए भावनाओं और  ऊर्जा को भली प्रकार ग्रहण कर पाता है ।

5.
शांतचित्त होकर सुखासन में भोजन करें
हमारे साथ ऐसा अधिकतर होता है कि भोजन करते समय हम या तो ऑफिस/विद्यालय जाने की जल्दी में होते हैं या किसी से हुई अनबन के बारे में सोचते रहते हैं या किसी और घटना की ओर मन लगा होता है । इस तरह की स्थिति में जबकि हमारा मस्तिष्क कहीं और लगा हुआ है, हमारा शरीर भोजन को सही तरह से कैसे पचा पायेगा और हम भोजन में निहित पदार्थ और ऊर्जा को सही प्रकार से कैसे उपयोग में ला पायेंगे ?  सुखासन में बैठकर भोजन करना भी इसी तथ्य पर आधारित है । हमारा शरीर का निर्माण इस ढंग से हुआ है की पालथी मारकर बैठना एक सबसे आरामदायक और स्वास्थ्यवर्धक बैठने की मुद्रा साबित होती है जो शरीर में मुख द्वारा ग्रहण किये गए भोजन के प्रवाह को पाचन संस्थान में नियमित और आसान बनाता है । अतः अपने मन को सभी तरह के द्वंद्व से मुक्त करके किसी आसनी पर सुखासन में बैठकर भोजन करना चाहिए ।

6.
भोजन के प्रति सम्मान रखें और  जरुरतमंदों  को भोजन कराएं
अब आप कहेंगे कि भाई एक निर्जीव वस्तु के लिये सम्मान दिखाने का क्या मतलब । अगर हम फूटबाल को सम्मान देने लगे तो हम उससे खेलेंगे कैसे ? लेकिन भाई यहाँ पर तात्पर्य यह है जिस चीज का जो उपयोग नीयत किया गया है वह सर्वश्रेष्ठ तरीके से होना चाहिये । भोजन एक जीवनदायी पदार्थ है और अगर आप जरुरत से ज्यादा भोजन करते हैं या अनावश्यक रूप से जूठे के रूप में फेकतें हैं तो आप भोजन का असम्मान करते हैं । जरुरतमंदों को भोजन कराना या भोज्य पदार्थ दान करना भी भोजन के प्रति सम्मान व्यक्त करने का ही एक तरीका है । यह नियम शारीरिक और मानसिक के साथ आध्यात्मिक भी है । और इस नियम को अपने जीवन में लागू कीजिये और आप खुद जान जायेंगे कि आप ज्यादा तनावमुक्त और प्रसन्नचित्त रहने लगेंगे ।


इन सभी नियमों को जो की भोजन पर आधारित है, पढ़कर और समझकर आप जान ही गए होंगे कि इन नियमों के पालन से हम अपने आपको स्वस्थ रखने के साथ साथ अपने अन्दर कई अच्छे गुण जैसे कि संयम, करुणा, दान देना इत्यादि भी उत्पन्न कर सकते हैं । और इन सबका मतलब है शारीरिक के साथ आध्यात्मिक विकास भी । अगर आप अपने बच्चों को शुरू से ही इन नियमों पर चलने की प्रेरणा दें तो उनमें अच्छे गुणों के विकास के साथ साथ वे निरोग रहेंगे और उनका शारीरिक और बौद्धिक विकास भी सही तरीके से होगा ।