मेरा यहाँ यह बताना आवश्यक है कि व्यायाम और योगासन में बहुत बड़ा अंतर है करने के तरीके का । व्यायाम में आप अपने शरीर को गतिमान रखते है किन्तु योगासन में आप एक मुद्रा में अपने शरीर को स्थिर रखते हैं । व्यायाम में हम अपने शरीर को थका कर सोचते हैं की प्रयोजन सिद्ध हुआ किन्तु योगासन में हम उतने ही देर तक आसन करते हैं जितने देर तक हम सुखपूर्वक कर सकें और अनावश्यक रूप से शरीर को कष्ट नहीं देते । योगासन में हमारे श्वांस प्रश्वांस का क्रम सुनियोजित होता है किन्तु व्यायाम में इन चीजों का ख्याल नहीं किया जाता । इसीलिए व्यायाम शारीरिक ताकत तो बढ़ा देता है किन्तु सहनशक्ति और लम्बे समय तक चलने वाला बनाता है योगासन और यही तो कहलाता है स्थिरता ।
अब प्राणायाम को समझने के लिए मैं एक बात बताता हूँ । जब भगवान एक प्राणी को बनाता है तो उसको साँसे गिनकर देता है ( इस बात को आप वैज्ञानिक तरीके से ऑक्सीजन के उम्र बढाने वाले प्रभाव से भी समझ सकते हैं, मतलब जितनी ज्यादा सांस लेने की गति उतनी ही ज्यादा जल्दी बुढ़ापा और फिर मृत्यु ) और जो इसको जल्दी ख़त्म करता है वो जल्दी ही अशक्त होकर काल के ग्रास में चला जाता है । कुत्ते की सांस लेने की गति होती है 25 - 30 बार प्रति मिनट और ये जीता है लगभग 25 साल । एक युवा इंसान की सांस लेने की गति होती है 15 - 18 बार प्रति मिनट और इंसान की औसत उम्र होता है 75 साल । एक कछुए की सांस लेने की दर होती है 3 - 4 बार प्रति मिनट और इसकी औसत उम्र होती है 300 वर्ष । अब आप समझ ही जायेंगे कि अगर साँसों को कंजूसी से खर्च किया जाये तो लम्बी उम्र पायी जा सकती है और यह काम करने में आपको सक्षम बनाता है प्राणायाम का अभ्यास ।
अब आप कहेंगे कि अरे भाई हमें तो सिद्धि कैसे मिलती है ये जानना है तो मैं ये कहूंगा कि अक्षर सीखे बिना आप पुस्तक बांचना नहीं सीख सकते । सिद्धियाँ योगासन और प्राणायाम के साथ भावनाओं को जोड़कर अभ्यास करने से आती हैं और ये बात याद रखने वाली है कि योगासन और प्राणायाम का अभ्यास इसी दिशा में किया जाने वाला एक प्रयास है । इस बात को मैं विस्तार से लिखूंगा इसी कड़ी के अगले ब्लॉग में और तब तक हम योगासन और प्राणायाम के आधारभूत सिद्धांतों को समझने का प्रयास करेंगे ।
प्राणायाम में मुख्यतः 4 प्रकार की सांस की गतियाँ होती हैं और वे हैं:
1. पूरक में सांस को धीरे धीरे अन्दर लेते हैं ।
2. सांस अन्दर लेने के बाद रोकना अन्तः कुम्भक कहलाता है ।
3. सांस को धीरे धीरे बाहर निकालना रेचक कहलाता है ।
4. सांस छोड़ने के बाद थोड़ी देर रोकना बहिर्कुम्भक कहलाता है ।
शुरुआत करने वालों के लिए सबसे उपयुक्त प्राणायाम की क्रिया है अनुलोम-विलोम प्राणायाम । अनुलोम-विलोम में पहले बाएं नाक से सांस लें और दायें से छोड़ें और फिर दायें से सांस लें और बाएं से छोड़ें । सांस अन्दर लेने के बाद कम से कम 5 सेकेंड तक सांस को रोकें और सांस बाहर छोड़ने के बाद भी सांस को रोकें । सांस अन्दर लेने या बाहर छोड़ने की क्रिया धीरे धीरे होनी चाहिए । यह क्रिया नित्य 5-10 बार दोहरायें और संख्या को बढ़ा भी सकते हैं ।
योगासन के साथ मुद्राओं और बंधों का प्रयोग प्राणायाम की ताकत और प्रभाव बढ़ा सकता है और मेरा विश्वास है कि इस तरह के अभ्यास से व्यायाम क्या योगासन तक की जरुरत ख़त्म हो सकती है ।
मुद्राओं और बंधो का प्रयोग एक स्तर ऊपर की बात है जो की हम अगले कड़ियों में जानेंगे । अभी मैं ये कहूंगा की आगे के अभ्यासों के लिए आपको अनुलोम-विलोम का कम से कम 1 माह तक अच्छा अभ्यास कर लेना चाहिए ।
योगासन में भी श्वांस की गति पर ध्यान देने से योगासन के लाभों में वृद्धि हो जाती है । कुछ आसन जैसे कि ताड़ासन, भुजंगासन, मत्स्यासन, हलासन इत्यादि को रेचक करके बहिर्कुम्भक की अवस्था में किया जाना चाहिए ।
कुछ आसन जैसे कि योगमुद्रासन और पद्मासन तो प्राणायाम के लिए अति उत्तम आसन माने गए हैं । खाना खाने के बाद 15 मिनट तक वज्रासन करने से खाना अच्छे से पचता है और चर्बी सम्बंधित समस्याएं नहीं होती ।
योगासन के कई महत्वपूर्ण क्रियाओं को मिलाकर सूर्य नमस्कार बनाया गया है । सूर्य नमस्कार के बारे में विस्तार से अंग्रेजी में यहाँ पढ़ सकते हैं : http://balsanskar.com/english/lekh/238.html
उम्मीद है कि यह लेख आपको समझ में आया होगा और योगासन और प्राणायाम के बारे में आपकी श्रद्धा और उत्सुकता बढ़ी होगी । मैं इसके आगे का अगली कड़ियों में लिखूंगा । मैं कुछ महत्वपूर्ण आसनों को चित्र और लाभों के वर्णन के साथ अगले ब्लॉग में लिखूंगा । अगर आपका कोई प्रश्न है तो आप मुझे यहाँ कमेंट में पूछ सकते हैं ।