शुक्रवार, 3 फ़रवरी 2012

-- भारत वन्दना --

हे मातृभूमि भारती माँ ।
उतारते तेरी आरती माँ ।।

तेरी नदियाँ, तेरे पर्वत ।
आकर्षित करते हैं बरबस ।।
चीर अम्बर औ हरी ये दूब है ।
मन भरने को ये तो खूब है ।।
आके तेरी इस गोंद  में,
चिंता स्वर्ग सिधारती माँ ।

पेड़ों की जो यह छाया है ।
उसमें तेरी ही काया है ।।
दिनकर की जो धुप खिले ।
उसमें तेरा ही रूप मिले ।।
मेरी आँखें तुझको ही,
हर ओर हैं निहारती माँ ।

सीता का सतीत्व देखा ।
और शिवा का नेतृत्व देखा ।
मीरा की जो भक्ति देखी ।
महाराणा की भी शक्ति देखी ।।
तेरे वीरों की तलवारें,
अरि का सर उतारती माँ ।

तू वीर प्रसूता जननी है ।
तेरी ही सेवा करनी है ।।
आन बान औ जो यह शान है ।
माँ तुझ पर ही कुर्बान है ।।
तेरे लिए यह भक्ति ही,
हमें रण में उतारती माँ ।

हे मातृभूमि भारती माँ ।
हे कर्मभूमि भारती माँ ।।
हे धर्मभूमि भारती माँ ।
उतारते तेरी आरती माँ ।।

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