मंगलवार, 12 फ़रवरी 2013

एक धर्मप्रेमी की प्रार्थना

धर्म का सदा मेरा आचरण हो ।
सत्य ही मेरा आवरण हो ।।
बना लो उसका अंग मुझको,
असुर दमन का जो उपकरण हो ।।

मेरी आवाज धर्म का  उदघोषण हो ।
मेरा कार्य धर्म का पोषण हो ।।
उठूँ जब आवेश से मैं तो,
तीव्र अधर्म का यह क्षरण हो ।।

तुम सत्य व धर्म का उत्प्रेरण हो ।
मेरे हर कर्म का तुम ही कारण हो ।।
तुमको जाने बिना हे प्रभु,
इस जीव का ना मरण हो ।।

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